शनिवार, 12 मार्च 2011

" विद्वान और वेदना "

         वेदों को ज्ञान का कोष माना जाता है |ज्ञान किसी भी वस्तु ,चाहे वो  जड़  हो या चेतन ,की अनुभूति अथवा एहसास को कहते हैं |ज्ञान को प्राप्त करने की विधा को विद्या कहते हैं और जिसको ज्ञान प्राप्त हो जाए उसको ही विद्वान कहा जाता है |बौद्धिक स्तर पर प्राप्त होने वाला ज्ञान ,कुछ नियमों का पालन  करने पर ही मिलता है |इस ज्ञान को मूलत: विद्या माना जाता है |
          कुछ  अनुभूतियां शरीर और मन के स्तर पर अनुभूत की जाती हैं , इन को संवेदनाएं कहते हैं | इन शारीरिक और मानसिक अनुभूतियों में कुछ खुशी दे जाती हैं तो कुछ इसके विपरीत दुःख अथवा कष्ट |इन कष्ट पहुंचाने ,पीड़ा देने वाली अनुभूतिओं से वेदना जागती है |                                                          
          इन दोनों - विद्वान और वेदना - को अब अगर समझ जायें , तो किसी भी प्रकार के कष्ट अथवा पीड़ा के कारण का  एहसास  हो  जाएगा | जिसे  यह ज्ञान  हो जाता  है कि  कष्ट हो कहां रहा है अथवा क्यों हो  रहा है या यूं कह लें कि कष्ट नाम का एहसास है क्या,वही पीड़ा को समझ पाता है |यह कष्ट अगर शारीरिक  है , तब सिर्फ पीड़ा का भान अधिक अथवा कम  होता है , जिसको कहीं अन्यत्र व्यस्त होने पर कुछ पलों को भूल भी जाते हैं |परन्तु अगर यही पीड़ा मन के स्तर पर होती है तब जो पीड़ा का तीखा एहसास होता है ,उसको ही वेदना  कहते हैं | इस कष्ट से आत्मा प्रभावित होती है | ये  पीड़ा मानसिक होती है ,जिसको चेतना सरलता से भूल नहीं पाती |   

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