सोमवार, 25 अक्तूबर 2010

"भोले बाबा" का परिवार विरोधाभासों का भंडार


         शंकर जी अपने गले में सर्प धारण करते हैं।उनका वाहन वॄषभ अर्थात नंदी है।उनके बेटे कार्तिकेय का
 वाहन मोर है ,जो सर्प का शत्रु है और उसे खाता है । माता पार्वती का वाहन सिंह है जो वॄषभ को अपना भोजन बनाता है। गणेश जी का वाहन चूहा है , जिसका शत्रु सर्प है । शंकर जी रुद्र स्वरूप उग्र और संहारक हैं तथा उग्रता का निवास  मस्तिषक में है ,किन्तु शान्ति  की प्रतीक गंगा उनकी जटाओं में विराजमान हैं । उनके कंठ में विष है ,जिससे वो नीलकंठ कहलाये और विष की तीव्रता के शमन के लिये मस्तिष्क में अर्धचंद्र विराजमान है । सर्प तमोगुण का प्रतीक है ,जिसे शंकर जी ने अपने वश में कर रखा है । इसी प्रकार सर्प जैसे क्रूर और हिंसक जीव महाकाल के अधीन हैं ।
        शंकर जी  के गले में मुंडमाल इस तथ्य का प्रतीक है कि   उन्होने मॄत्यु को गले लगा रखा है । इस से यह भी प्रमाणि त होता है कि  जो जन्म लेता है ,वह मरता अवश्य है । शंकर जीद्वारा हाथी और सिंह के चर्म को धारण करने की कल्पना की गयी है। हाथी अभिमान और सिंह हिन्सा का प्रतीक है ।शिव जी ने इन दोनों को धारण कर रखा है । शिव जी अपने शरीर पर श्मशान की भस्म धारण करते हैं ,जो जगत की निस्सारता का बोध कराती है ,अर्थात शरीर की नश्वरता का बोध कराती है । अतः इतने विरोधाभसों में जो सन्तुलन बनाये रखकर शिव समान रहता हैं वही अनुकरणीय है ।
                                                               -निवेदिता 

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